बस देख ली आजादी हामनै म्हारे हिन्दुस्तान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ।।
न्यूं कहो थे हाळियाँ नै सब आराम हो ज्यांगे -
खेतों में पानी के सब इंतजाम हो ज्यांगे ।
घणी कमाई होवैगी, थोड़े काम हो ज्यांगे -
जितनी चीज मोल की, सस्ते दाम हो ज्यांगे ।
आज हार हो-गी थारी कही उलट जुबान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
जमींदार कै पैदा हो-ज्याँ, दुख विपदा में पड़-ज्याँ सैं -
उस्सै दिन तैं कई तरहाँ का रास्सा छिड़-ज्या सै ।
लगते ही साल पन्द्रहवाँ, हाळी बणना पड़-ज्या सै -
घी-दूध का सीच्या चेहरा कती काळा पड़-ज्या सै ।
तीस साल में बूढ़ी हो-ज्या आज उमर जवान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
पौह-माह के महीने में जाडा फूक दे छाती -
पाणी देती हाणाँ माराँ चादर की गात्ती ।
चलैं जेठ में लू, गजब की लगती तात्ती -
हाळी तै हळ जोड़ै, सच्चा देश का साथी ।
फिर भी भूखा मरता, देखो रै माया भगवान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
बेईमानी तै भाई आज धार ली म्हारे लीडर सारों नै -
रिश्वत ले कै जगहां बतावैं आपणे मिन्तर प्यारों नै ।
कर दिया देश का नाश अरै इन सारे गद्दारों नै -
आज कुछ अकल छोडी ना हाळी लोग बिचारों मैं ।
आज तो कुछ भी कद्र नहीं है एक मामूली इंसान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
रचनाकार: कवि नरसिंह
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ।।
न्यूं कहो थे हाळियाँ नै सब आराम हो ज्यांगे -
खेतों में पानी के सब इंतजाम हो ज्यांगे ।
घणी कमाई होवैगी, थोड़े काम हो ज्यांगे -
जितनी चीज मोल की, सस्ते दाम हो ज्यांगे ।
आज हार हो-गी थारी कही उलट जुबान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
जमींदार कै पैदा हो-ज्याँ, दुख विपदा में पड़-ज्याँ सैं -
उस्सै दिन तैं कई तरहाँ का रास्सा छिड़-ज्या सै ।
लगते ही साल पन्द्रहवाँ, हाळी बणना पड़-ज्या सै -
घी-दूध का सीच्या चेहरा कती काळा पड़-ज्या सै ।
तीस साल में बूढ़ी हो-ज्या आज उमर जवान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
पौह-माह के महीने में जाडा फूक दे छाती -
पाणी देती हाणाँ माराँ चादर की गात्ती ।
चलैं जेठ में लू, गजब की लगती तात्ती -
हाळी तै हळ जोड़ै, सच्चा देश का साथी ।
फिर भी भूखा मरता, देखो रै माया भगवान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
बेईमानी तै भाई आज धार ली म्हारे लीडर सारों नै -
रिश्वत ले कै जगहां बतावैं आपणे मिन्तर प्यारों नै ।
कर दिया देश का नाश अरै इन सारे गद्दारों नै -
आज कुछ अकल छोडी ना हाळी लोग बिचारों मैं ।
आज तो कुछ भी कद्र नहीं है एक मामूली इंसान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
रचनाकार: कवि नरसिंह
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ReplyDeletecan u give me this bhajan or raagni...as soon as u can...
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anubhavjaat420@gmail.com